जिसके फूटे कर्म उसके टूटेंगे भ्रम....

Vaikuntha Astrologer
By - Acharya Nidhi Bhardwaj
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गीता के अनुसार, कर्म का अर्थ है - निष्काम भाव से, बिना किसी फल की इच्छा के, अपने कर्तव्य का पालन करना।

इंसान चाहे कलियुग में हो, चाहे सतयुग में उसे अपने कर्मों का हिसाब-किताब तो देना ही पड़ता है। जिसने जैसे कर्म संसार में किए हैं, उन्हीं के अनुसार उसे अपने कर्मों का फल भोगना भी पड़ेगा। यही संसार का नियम है। इसीलिए अच्छे कर्म करने तथा बुरे कर्मों से बचने की सलाह दी जाती है।

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं: तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करना ही है। कर्मों के फल पर तुम्हारा अधिकार नहीं है। अतः तुम निरन्तर कर्म के फल पर मनन मत करो और अकर्मण्य भी मत बनो।

अगर आप ईमानदारी से आध्यात्मिक मार्ग पर हैं, तो कुछ भी स्पष्ट नहीं होगा। हर चीज धुंधली होगी। 

संसार में आज कई लोग कहते हैं कि बेईमानी से जीवन जीओ तो मौज करोगे, लेकिन यह मौज थोड़े समय का है, क्योंकि जैसे ही पुण्य का फल क्षीण होगा, उसके बाद जो भोगना होगा, वो बेहद मुश्किल होगा।

ज्योतिषाचार्य 
निधि भारद्वाज ( एम.ए ज्योतिष ) 
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